लगभग 28 महीने बाद योगी सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार के जरिये कहीं न कहीं जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के साथ उन्हें संदेश देकर साधे रखने की भी कोशिश की गई है। ब्राह्मण और वैश्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर अगड़ों को महत्व देने का संदेश तो दिया ही गया है, पहली बार गुर्जर, गड़रिया, जाटव और कहार को प्रतिनिधित्व देकर इन जातियों की भी नाराजगी दूर करने का प्रयास हुआ है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में गुर्जर और कश्यप समाज के लोग रहते हैं।
कुर्मी और जाटों के साथ पिछड़ों और अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर भाजपा की चुनावी लड़ाई को 60 बनाम 40 बनाने को ही जमीन पर उतारा गया है। ऑपरेशन क्लीन के चलते विवादों में घिरे चेहरों को किनारे करने की कोशिशों को कुछ हद तक अमली जामा पहनाने के बावजूद ध्यान रखा गया है कि जातीय गणित गड़बड़ाने न पाए।
विस्तार के बाद 56 सदस्यीय मंत्रिमंडल में अगड़ों और पिछड़ों व अनुसूचित जाति के बीच 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी की रणनीति पर काम किया गया है। अब अगड़ी जातियों के 28 मंत्री हो गए हैं। पिछड़ी जातियों के 19, अनुसूचित जातियों के सात चेहरों के साथ एक सिख तथा एक मुस्लिम चेहरा यानी गैर अगड़े भी कुल 28 चेहरे ही मंत्रिमंडल में हैं।
अगड़ों में नौ ब्राह्मण, 8 ठाकुर, 5 वैश्य 2 भूमिहार, 3 खत्री और 1 कायस्थ हैं। पिछड़ों में 4 कुर्मी, 3 जाट, 2 लोध, 2 मौर्य तथा गुर्जर, गड़रिया, कहार, निषाद, नोनिया चौहान, सैनी, यादव व राजभर समाज का एक-एक चेहरा है।
अनुसूचित जाति से जीएस धर्मेश को शामिल कर पहली बार जाटव बिरादरी को प्रतिनिधित्व देने के साथ तथा इसी जिले की फतेहपुर सीकरी से विधायक जाट बिरादरी के चौधरी उदयभान को मंत्री बनाकर आगरा और आसपास के जातीय समीकरणों को और मजबूत बनाने की कोशिश की गई है। कमल रानी वरुण को लेकर पासी समाज की हिस्सेदारी बढ़ाकर भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के बीच पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश की गई है।