उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाल ही में एक बड़ा निर्णय लेते हुए राज्य के मदरसों और स्कूलों में होने वाली प्रार्थना के साथ ही राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिया है। लिहाजा अब मदरसों में भी पढ़ाई शुरू होने से पहले बच्चे राष्ट्रगान गाएंगे जिससे उनमें बचपन से ही राष्ट्र की समझ और राष्ट्र प्रेम का विकास होगा। योगी सरकार द्वारा इस मामले पर अंतिम रूप से मोहर लगाने के साथ ही उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड से संबद्ध सभी मान्यता प्राप्त और अनुदानित मदरसों में राष्ट्रगान अनिवार्य हो गया है।
बहरहाल इस आदेश को राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यह तो हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपना राष्ट्रगान गर्व के साथ गाए। जिस तरह दूसरे राष्ट्रीय प्रतीक हमारी पहचान बनते हैं, उसी तरह राष्ट्रगान भी पहचान हैं। बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में इस वक्त लगभग 16,461 मदरसे हैं, जिनमें से 560 को सरकार से अनुदान प्राप्त होता है। अब सवाल है कि राष्ट्रगान अनिवार्य क्यों है? दरअसल राष्ट्रगान अनिवार्य होने से स्कूली बच्चों में देशभक्ति की भावना बढ़ेगी। साथ ही बच्चे राष्ट्रगान का मतलब भी समझ सकेंगे। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत गाने को लेकर कोई आदेश जारी किया गया है।
कुछ साल पहले सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का आदेश जारी किया गया था। मगर उसे लेकर बहुत सारे लोगों ने आपत्ति जताई, फिर मामला अदालत में भी गया। मालूम हो कि 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में उत्तर प्रदेश में मदरसों और सभी स्कूलों में राष्ट्रगान गायन को अनिवार्य कर दिया था। न्यायालय में मदरसों में राष्ट्रगान की अनिवार्यता संबंधी आदेश पर रोक लगाने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश उस समय के मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने दिया। न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रगान का गायन किसी की आस्था का उल्लंघन नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या देशभक्ति के प्रकटीकरण के लिए राष्ट्रगान का गायन आवश्यक है और राष्ट्रगान नहीं गाने वाले देशभक्त नहीं हैं? बहरहाल जब सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने का मामला न्यायालय गया था तब इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल से भी सवाल किया था कि जो राष्ट्रगान नहीं गाते हैं, क्या वे राष्ट्रभक्त नहीं होते?
मदरसों के आधुनिकीकरण पर सरकार के प्रयास : उत्तर प्रदेश सरकार मदरसों में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने का लगातार प्रयास कर रही है। पिछले पांच वर्षो में सरकार ने मदरसों का आधुनिकीकरण करने का काम किया है। सबसे अच्छी बात यह है कि अब मदरसों में स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पाठ्यक्रम को भी जोड़ने पर काम हो रहा है। विदित हो कि भारत सरकार ने स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के तहत मदरसों/ अल्पसंख्यकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए जो विशेष स्कीम लागू की है, उससे मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना और अल्पसंख्यक संस्थानों के बुनियादी ढांचे के विकास से मिलकर बनी है। इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2021-22 के बजट में मदरसों के आधुनिकीकरण के मद में 479 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। इसके अलावा, योगी आदित्यनाथ सरकार ने फर्जी मदरसों को रोकने के लिए वर्ष 2017 में मदरसा पोर्टल भी बनाया था जिसके तहत 19,125 मदरसों में से 16,531 मदरसों को इस पोर्टल से जोड़ने का काम किया गया। योगी आदित्यनाथ सरकार वर्तमान में 7,442 मदरसों का आधुनिकरण कर रही है और इन मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम भी लागू किया गया है। ऐसा होने से इन शैक्षणिक संस्थानों से पढ़कर निकलने वाले छात्र देश की मुख्यधारा में आसानी से समाहित हो सकते हैं। साथ ही उनकी आगे की अकादमिक राह भी आसान हो सकती है।
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत पर अनावश्यक विवाद : राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ भारत की स्वाधीनता का अभिन्न हिस्सा है। इसे पूर्ण सम्मान देना और इसके सम्मान की रक्षा करना भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है। राष्ट्रगान को लेकर हुए हर विवाद के बाद सबके जेहन में यही बात उठती होगी कि जब राष्ट्र की बात होती है तो जाहिर तौर पर राष्ट्रगान का सम्मान सवरेपरि है। अगर राष्ट्रगीत की बात की जाए तो बांग्ला भाषा के शीर्ष साहित्यकारों में गिने जाने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने हमारे राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की रचना देश की स्वाधीनता से दशकों पहले की थी। बाद में बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंद मठ’ में वंदे मातरम को भी शामिल किया गया जो देखते ही देखते पूरे देश में राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। वंदे मातरम में भारत को दुर्गा मां का प्रतीक बताए जाने के कारण बाद के वर्षो में मुस्लिम समुदाय की ओर से इसे लेकर असहज होने की बातें कही गई थीं। इसी विवाद के कारण भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वंदे मातरम को स्वाधीन भारत के राष्ट्रगान के रूप में नहीं स्वीकार करना चाहते थे। मुस्लिम लीग के साथ ही मुस्लिम समुदाय के बड़े वर्ग ने वंदे मातरम का इस वजह से विरोध किया था कि वह देश को भगवान का रूप देकर उसकी पूजा करने के खिलाफ थे।
लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रगीत को नहीं, बल्कि राष्ट्रगान को अनिवार्य बनाया है। यही वजह है कि राष्ट्रगान मदरसों में अनिवार्यता को लेकर विवाद नहीं, बल्कि सभी मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इसका सम्मान किया है और शिक्षण कार्य प्रारंभ होने से पहले मदरसों में राष्ट्रगान जन गण मन गाए जाने पर सभी ने अपनी सहमति जताई है। इसलिए आवश्यक है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का गायन राजनीतिक मुद्दा न बनने पाए इस पर सभी दलों को विशेष ध्यान रखना चाहिए। समझना होगा कि राष्ट्रगान कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि देश के सम्मान और विश्वास के साथ स्वाभिमान का प्रतीक है।
सभी राज्यों को करनी चाहिए पहल : पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार की पहल को देखते हुए अन्य राज्यों ने भी राष्ट्रगान की अनिवार्यता पर विचार करना शुरू कर दिया है। इसी के साथ हरियाणा सरकार भी राज्य के सभी मदरसों में राष्ट्रगान गाने की अनिवार्य पर विचार कर रही है। हरियाणा राज्य के शिक्षा मंत्री ने पिछले दिनों कहा था कि मदरसों में राष्ट्रगान के गायन से कोई नुकसान नहीं है। राष्ट्रगान हर जगह गाया जाना चाहिए, चाहे वह मदरसा हो या फिर स्कूल। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वहीं मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने भी कहा कि उनके राज्य में भी इसी तरह के कदम पर विचार किया जा रहा है। हमें याद रखना चाहिए कि मदरसों का देश की आजादी में अहम योगदान रहा है और वर्तमान में सरकार चाहती है कि मदरसे में पढ़ने वाले सभी छात्र उस विरासत को हमेशा याद रखें। जब छात्र रोज सुबह राष्ट्रगान गाएंगे तो उनमें राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना और मजबूत होगी।
संविधान की उद्देशिका की पहली लाइन में ही स्पष्ट लिखा है कि ‘हम भारत के लोग’ अर्थात भारत के सभी नागरिक। यहां धर्म के आधार पर बांटकर बात नहीं कही गई है, बल्कि भारत के समस्त नागरिकों को इंगित किया गया है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग और वंश के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है। इसलिए जब बात राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान के आदर, मान-सम्मान की आती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को इस हेतु प्रतिबद्ध होना ही चाहिए। हमारे संविधान के भाग चार (क) में कहा गया है राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करना प्रत्येक व्यक्ति का मूल कर्तव्य है।
इसलिए अपने मूल कर्तव्य का निर्वाह करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं ही इसके प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करनी चाहिए। सोचने वाली बात है कि क्या यह जरूरी है कि जब सरकार राष्ट्रगान के गायन अथवा उसके सम्मान के संबंध में नियम बनाए तभी हम सब देश के नागरिक उसका सम्मान करेंगे? यह सवाल समाज के प्रति आज ज्वलंत मुद्दा बनकर उभर रहा है। बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश सरकार ने मदरसों में राष्ट्रगान के गायन पर अनिवार्यता सुनिश्चित कर दी है। वैसे यह कार्य सरकार का नहीं, बल्कि हमारे धर्म गुरुओं, शिक्षकों और समाज के प्रतिष्ठित लोगों का है। लेकिन जब समाज के प्रबुद्ध लोग अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ने लगते हैं, तब सरकार को कठोरता अपनानी पड़ती है। अर्थात नियम का निर्माण करना पड़ता है। खैर, इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रगान का सम्मान होना चाहिए, इसे देश के सभी नागरिकों को करना चाहिए। यह उनका अपने देश के प्रति पहला कर्तव्य है। लेकिन कुछ सवाल सदैव विमर्श में रहते हैं। जैसे क्या राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने वाले ही सच्चे देशभक्त हैं? सिनेमा हाल में राष्ट्रगान बजने पर खड़ा होना चाहिए?
तमाम ऐसे सवाल हैं जिन पर अलग-अलग विमर्श हो सकता है, लेकिन जब बात मूल कर्तव्य की आती है तो संविधान में इसे विधिक शक्ति नहीं प्राप्त है, इसलिए मूल कर्तव्य को लागू नहीं कराया जा सकता और इसके लिए कोई दंड भी आरोपित नहीं किया जा सकता। अगर याद हो तो एक घटना दिसंबर 2016 में चेन्नई में हुई थी। एक सिनेमाघर में राष्ट्रगान के समय नौ लोग खड़े नहीं हुए थे, लिहाजा इंटरवल में इन लोगों को प्रताड़ित किया गया। इसके बाद इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। गुवाहाटी में व्हील-चेयर पर बैठे एक आदमी के साथ भी इस तरह की घटना हो चुकी है। सभी को यह समझना चाहिए कि मूल कर्तव्य का पालन नहीं करने पर कोई दंड नहीं है, लेकिन वहीं अगर कर्तव्य का पालन न करते हुए संविधान का उल्लंघन हो जाता है तो यह दंडनीय है। हालांकि यह भी सच है कि संविधान के मौलिक कर्तव्यों के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान आदि का सम्मान करने को भारतीय नागरिक का पहला मूल कर्तव्य बताया गया है। बहरहाल, देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना जगाने के संदर्भ में राष्ट्रीय गान आवश्यक है, परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या इसे जबरन थोपा जाना चाहिए?