कॉर्बेट से राजाजी टाइगर रिजर्व की मोतीचूर रेंज में शिफ्ट किए गए बाघ का रेडियो कॉलर शनिवार को बाड़े में पड़ा मिला। बाघ बाड़े से गायब है। यह जानकारी सामने आने के बाद पार्क प्रशासन में हड़कंप मच गया। वहीं, लापरवाही का आलम यह था कि बाघ की मॉनीटरिंग कर रहे वन अधिकारी बाघ को बाड़े में समझकर निश्चिंत बैठे रहे।
नौ जनवरी की सुबह कार्बेट से राजाजी पार्क लाए गए बाघ को उसी रोज शाम को करीब चार बजे बाड़े से रिलीज करने के लिए गेट खोला दिया गया था, लेकिन बाघ बाड़े से नहीं निकला। उस दौरान वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत भी मौजूद थे। रविवार को भी बाघ के पूरे दिन बाड़े में ही मौजूद रहने की जानकारी दी गई। सोमवार को जब बाघ बाड़े से बाहर नहीं निकला तो उसकी तस्वीर लेने के लिए ड्रोन की मदद ली गई। ड्रोन से भी जब बाघ का पता न चला तो वन कॢमयों की टीम बंद वाहन में सवार होकर बाड़े के भीतर गई। इस दौरान पूरे बाड़े का कोना-कोना छानने के बाद भी बाघ कहीं नहीं दिखा।
इस दौरान टीम को रेडियो कॉलर मिला जो कि बाघ को पहनाया गया था। बाड़े में रेडियो कॉलर मिलने के बाद पार्क अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए। माना जा रहा है कि बाघ रात को ही बाड़े से निकलकर जंगल में चला गया, जिसकी भनक वन कॢमयों को नहीं लगी। मोतीचूर रेंज के वार्डन ललिता प्रसाद टम्टा ने घटना की पुष्टि की है। वहीं, रेडियो कॉलर के बिना न केवल बाघ की लोकेशन मिलना मुश्किल है। बाघ के रिहायशी क्षेत्र की तरफ मूवमेंट करने की सूरत में बाघ व इंसान दोनों के लिए खतरा पैदा हो गया है।
सही से नहीं पहनाया गया रेडिया कॉलर
बाघ को जो रेडियो कॉलर पहनाया जाता है, उसका साधारण परिस्थितियों में निकलना संभव नहीं होता। जंगली जानवर घनी झाड़ियों से होकर निकलते हैं, ऐसी स्थिति में भी रेडियो कॉलर नहीं गिरता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या बाघ को कॉलर सही तरीके से नहीं पहनाया गया था।
सिग्नल से धोखा खा गए वनकर्मी
बाघ के गले से रेडियो कॉलर बाड़े में गिर गया। लेकिन उससे मिल रहे सिग्नल से वनकर्मी धोखे में रहे। रेडियो कॉलर बाघ की नहीं, बल्कि खुद की लोकेशन बाड़े में बताता रहा। रेडियो कॉलर करीब आधा किलोमीटर के दायरे में लोकेशन बता सकता है।
एक बाघिन हो चुकी है शिफ्ट
मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में कॉर्बेट से बाघ शिफ्ट करने के लिए वर्ष 2016 में योजना तैयार की गई थी। वर्ष 2017 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने इसे मंजूरी दी। पार्क के करीब 550 वर्ग किलोमीटर में फैले मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से कुल पांच बाघ लाए जाने हैं। जिनमें से एक बाघिन को बीते माह 24 दिसंबर को मोतीचूर लाया जा चुका है, जबकि दूसरे बाघ को गत शनिवार को लाया गया।
इसलिए पड़ी शिफ्टिंग की जरूरत
820 वर्ग किलोमीटर में फैला राजाजी टाइगर रिजर्व बाघों के वासस्थल के लिए उपयुक्त है। सीटीआर के नजरिये से देखें तो 20 बाघ प्रति सौ वर्ग किमी के मानक के हिसाब से राजाजी में डेढ़ सौ से ज्यादा बाघों को धारण करने की क्षमता है। बावजूद इसके पार्क के चीला, गौहरी और रवासन क्षेत्रों के 270 वर्ग किलोमीटर के दायरे में ही बाघ हैं, जिनकी संख्या 40 के करीब है। शेष 550 वर्ग किलोमीटर में फैला मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में इस लिहाज से वीरान है। वहां पिछले सात वर्षों से केवल दो बाघिन ही मौजूद हैं। पार्क से गुजर रही रेल लाइन, हाईवे और मानवीय दखल की वजह से गंगा के दूसरी तरफ पूर्वी क्षेत्र से बाघ मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में नहीं आ पाते। नतीजतन इस क्षेत्र में बाघों का कुनबा बढ़ नहीं पा रहा।