कुंभ का वर्णन वेद-पुराणों में भी मिलता है। जिसमें वर्णित कथा के अनुसार कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से माना गया है। कहा जाता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। जहां कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होता है वहीं महाकुंभ 12 कुंभ मेले के बाद यानी 144 साल में लगता है।
लोहड़ी पर्व यानी 13 जनवरी, 2025 से महाकुंभ (Maha kumbh 2025) की शुरुआत हुई थी, जिसका आखिरी अमृत स्नान महाशिवरात्रि यानी 26 फरवरी 2025 को किया जाएगा। इस मौके पर ये जानना काफी रोचक होगा कि कुंभ का इतिहास आखिर कितना पुराना है। चलिए जानते हैं इस बारे में।
पौराणिक कथा के मुताबिक, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन के दौरान कई तरह के रत्न उत्पन्न हुए, जिन्हें देवताओं और असुरों ने बांट लिया। समुद्र मंथन के आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए।
अमृत पाने की लालसा में देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया। इस छीना-झपती में अमृत की कुछ बूंदें धरती के 4 स्थानों, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। माना जाता है कि तभी से इन चार स्थानों पर हर 12 साल के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है।
पहली बार कुंभ का आयोजन कब हुआ, इसे लेकर कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता। प्रथम कुंभ आयोजन की तारीख को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, 7वीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने अपने एक यात्रा विवरण में कुंभ का वर्णन किया है।
इस यात्रा विवरण में उन्होंने प्रयागराज के कुंभ महोत्सव के दौरान संगम पर स्नान का उल्लेख करते हुए इसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थल बताया है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 8वीं शताब्दी में भारतीय गुरु तथा दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की थी।