दिल्‍ली की तरह ऋषिकेश में भी ऊंचा हो रहा कूड़े का पहाड़, पर्यटन व पर्यावरण के लिए बन रहा नुकसान

ऋषिकेश में कूड़े का पहाड़ शहरवासियों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है। करीब 40 से 45 मीटर ऊंचे इस कूड़े के ढेर की गंगा नदी से दूरी महज 250 मीटर है। यह पर्यावरण व पर्यटन के लिए गंभीर संकट तो बन ही रहा है साथ ही इस क्षेत्र की परिधि में बसी हजारों की आबादी के लिए सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। नैसर्गिक सौंदर्य व साहसिक खेलों के लिए विख्यात ऋषिकेश में कूड़े का पहाड़ शहरवासियों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है।

करीब 40 से 45 मीटर ऊंचे इस कूड़े के ढेर की गंगा नदी से दूरी महज 250 मीटर है। यह पर्यावरण व पर्यटन के लिए गंभीर संकट तो बन ही रहा है, साथ ही इस क्षेत्र की परिधि में बसी हजारों की आबादी के लिए सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है।
दुर्भाग्य से बीते दो से तीन दशकों में इस कूड़े के निस्तारण को न अधिकारियों ने गंभीरता दिखाई न जन प्रतनिधियों ने। इसी का परिणाम है कि यह कम होने के बजाय ऊंचा ही होता गया। अब देर सवेर सिस्टम नींद से जागा है, लेकिन अब विशाल पहाड़रूपी कूड़े के ढेर का निस्तारण गले की फांस बन रहा है।

देश में स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है। ऋषिकेश में कूड़ा निस्तारण को लेकर नगर निगम ने दैनिक उत्पन्न हो रहे कूड़े के निस्तारण के लिए कूड़ा पृथककरण व थ्री-आर जैसी प्रभावी विधियां तो अपना ली हैं, लेकिन शहर में पिछले तीन दशक से डंप हो रहे कूड़े का निस्तारण करना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। कई मीटर ऊंचाई तक जमा कूड़े का पृथककरण नहीं हो पा रहा है। जिससे कूड़े का प्रभावी निस्तारण करना मुश्किल हो रहा है।

दरअसल, ऋषिकेश शहर के मध्य बसे गोविंद नगर में नगर निगम ने कूड़ा घर बनाया है। समीप बसे गोविंद नगर, बनखंडी, तिलक रोड, गंगा नगर, हरिद्वार रोड सहित कई वार्डों के लिए कूड़ा घर अभिशाप बना हुआ है। इनकी आबादी करीब 1500 से अधिक है। सामान्य दिनों में भी कूड़े घर से चलने वाली दुर्गंध इन क्षेत्रों में पहुंचती रहती है। इससे पूरे परिवार खासा प्रभावित होते हैं। वहीं, वर्षाकाल में कूड़ा गीला होने के कारण अधिक दुर्गंध छोड़ता है। क्षेत्रवासी नगर निगम की ओर से ठोस प्रबंध नहीं होने से खासा रोष में हैं।

गोविंद नगर निवासी गुरमीत सिंह ने कहा कि क्षेत्र में डेंगू व मलेरिया के केस सामान्य हैं। पूरे वर्षभर इन क्षेत्रों में दुर्गंध चलती रहती है, जिससे लोगों का सांस लेना मुश्किल होता है। मानसून आने पर यहां महामारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है। श्वास संबंधी बीमारियों के मामले भी सामने आ रहे हैं।

स्थानीय निवासी मनजीत सिंह ने कहा कि दुर्गंध को रोकने के लिए सभी लोग अपने घरों में दरवाजे व खिड़की हमेशा बंद करके रखते हैं। हवा आने के लिए भी कोई स्थान नहीं छोड़ते, क्योंकि इससे दुर्गंध प्रवेश करने लगती है। सर्दी में कड़ाके की ठंड में क्षेत्रवासी घरों की छत पर धूप सेकने भी नहीं जा पाते हैं।

गोविंद नगर निवासी अमरजीत सिंह ने कहा कि दुर्गंध के कारण उनके रिश्तेदार उनके घर आना नहीं चाहते। कहा कि वे भी नहीं चाहते हैं कि कोई रिश्तेदार व परिचित घर पर आएं, क्योंकि कूड़े की दुर्गंध के कारण उन्हें भी खासी फजीहत झेलनी पड़ती है। कहा कि इससे कई रिश्तेदारों के साथ रिश्तों में दूरियां भी आती हैं।

तिलक मार्ग निवासी आर्यन शर्मा ने कहा कि कूड़े घर के कारण पूरे गोवंश, कुत्ते, खच्चर व बकरियों का जमावड़ा लगा रहता है। इस कारण रोजाना सड़क हादसे होते रहते हैं।

नगर निगम अपशिष्ट निस्तारण करने का आश्वासन देता आ रहा है, लेकिन कूड़े के ढेर में कमी देखने को नहीं मिली है। कहा कि नगर निगम दुर्गंध रोकने के लिए दवा का छिड़काव भी नियमित रूप से नहीं किया जाता है। उन्होंने नगर निगम से स्थानीय लोगों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए स्थायी समाधान की मांग की है।

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