जयपुर में 13 मई 2008 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट के पांच आरोपियों में से चार को ब्लास्ट के षडयंत्र का दोषी माना गया है। 11 साल तक चले इस मामले में सुनवाई करते हुए जज अजय कुमार शर्मा ने आरोपी सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान और सलमान को दोषी माना है, वहीं पांचवे आरोपी मोहम्म्द शहबाज हुसैन को बरी कर दिया गया है। शहबाज पर धमाकों के अगले दिन मेल के जरिए धमाकों की जिम्मेदारी लेने का आरोप था। कोर्ट ने इसे संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है। दोषी पाए गए आरोपियों की सजा के बिंदुओं पर गुरुवार से बहस होगी और संभवत: शुक्रवार को सजा का एलान होगा।
जानकारी हो कि जयपुर बम ब्लास्ट केस की विशेष अदालत पिछले 11 वर्ष से इसकी सुनवाई कर रही थी। इस मामले में वैसे तो 13 आरोपी है, लेकिन जयपुर जेल में पांच ही आरोपी थे। इनके अलावा दो आरोपी मोहम्मद आतीफ अमीन उर्फ बशीर और छोटा साजिद बाटला एनकाउंटर में मारा गया। वहीं,एक आरोपी आरिज खान उर्फ जुनैद दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है और 3 आरोपी मिर्जा शादाब बेग उर्फ मलिक, साजिद बड़ा और मोहम्मद खालिद अभी भी फरार है।
यह थे पांच आरोपी
1 मोहम्मद शहबाज हुसैन उम्र- 42
निवासी- लखनऊ
गिरफ्तारी- सितंबर 2008
आरोप- षड़यंत्र में शामिल, धमाकों के अगले दिन मेल के जरिए जिम्मेदारी ली।
2:मोहम्मद सैफ उर्फ कैरीऑन उम्र- 33
निवासी- सरायमीर, आजमगढ़
गिरफ्तारी- दिसंबर 2008
बाटला हाउस एनकाउंटर में गिरफ्तारी हुई
आरोप- धमाकों में शामिल, गुलाबी नगरी में पहला बम धमाका इसी ने किया, माणक चैक खंदे में बम रखा।
3 मोहम्मद सरवर आजमी उम्र- 35
निवासी- चांद पट्टी, आजमगढ़
गिरफ्तारी- जनवरी 2009
बाटला हाउस एनकाउंटर में गिरफ्तारी हुई
आरोप- धमाकों में शामिल, चांदपोल हनुमान मंदिर के सामने बम रखा।
4: सैफुर उर्फ सैफुर्रहमान अंसारी उम्र- 33
निवासी- आजमगढ़
गिरफ्तारी- अप्रेल 2009
आरोप- धमाकों में शामिल, फूल वालों के खंदे में बम रखा।
5 मोहम्मद सलमान उम्र- 31
निवासी- निजामाबाद, सरायमीर
गिरफ्तारी- दिसम्बर 2010
आरोप- षड़यंत्र में शामिल, सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर के पास बम रखा।
15 मिनट में हुए थे आठ धमाके-
जानकारी हो कि 13 दिसम्बर 2008 को शाम सात बजे सिर्फ 15 मिनट में जयपुर के परकोटे में एक के बाद एक 8 धमाके हुए। इनमें 71 लोगों की मौत हो गई और 185 लोग घायल हुए थे। उस शाम करीब सात बजे शहर के परकोटे में आम दिनों की तरह व्यापारी और आमजन अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। उसी दौरान शाम सात बजे बाद 12 से 15 मिनट के अंतराल में चांदपोल गेट, बड़ी चैपड़, छोटी चैपड़, त्रिपोलिया बाजार, जौहरी बाजार व सांगानेरी गेट पर बम ब्लास्ट हुए। इनसे पूरा शहर ही दहल गया था। पहला बम ब्लास्ट खंदा माणकचैक, हवामहल के सामने शाम करीब 7.20 बजे हुआ था, फिर एक के बाद एक 8 धमाके हुए।
अभियोजन ने मांगी थी फांसी‘-
केस में जहां अभियोजन ने कोर्ट से केस के आरोपियों को फांसी देने की गुहार की थी। मामले में विशेष लोक अभियोजक की ओर से अपनी दलीलों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए लिखित बहस पेश की है।
सुरक्षा का कड़ा इंतजाम
जयपुर ब्लास्ट फैसले को देखते हुए बुधवार को सेन्ट्रल जेल से लेकर कोर्ट तक सुरक्षा का कड़ा इंतजाम किया गया है। इसके अलाव कोर्ट परिसर के आस-पास एटीएस टीमों की निगरानी रही। डीसीपी, एडिशनल डीसीपी, एसीपी और वेस्ट जिले के ज्यादातर एसएचओ बुधवार सुबह से ही कोर्ट कलेक्ट्री सर्किल के आस-पास तैनात रहे और कोर्ट मे पहचान पत्र दिखाने के बाद ही प्रवेश दिया गया।
यूं चली सुनवाई
फैसला 11 साल 7 महीने और 5 दिन की सुनवाई के बाद आया। इस बीच 7 न्यायाधीशों ने सुनवाई की और 4 विशेष लोक अभियोजकों ने जयपुर का पक्ष रखा। न्यायालय में कुल 1293 गवाह पेश किए गए।
11 साल बाद भी उन परिवारों के जख्म आज भी हरे
इस घटना के 11 साल बाद भी उन परिवारों के जख्म आज भी हरे हैं, जिन्होंने बम धमकों में अपनों को खोया है। धमाकों वाले दिन दो बहनें चांदपोल हनुमानजी के मंदिर के पास एक हलवाई की दुकान से दही लेने गई हुई थीं, जब वो वहां पहुंची उसी वक्त धमाका हुआ। इस दौरान एक बहन इल्मा इस दुनिया को अलविदा कह गई, दूसरी बहन अलीना के जिस्म में आज भी उस धमाके से निकले छर्रे मौजूद हैं। अलीना के शरीर में आज भी चार छर्रे मौजूद हैं।
उसकी मां का कहना है कि डॉक्टरों ने दो छर्रे तो उस समय निकाल दिए थे, लेकिन शेष चार निकाले नहीं जा सके, जो आज भी उसके शरीर में मौजूद हैं। हालांकि, अब वह ना तो स्कूल जाती है और ना ही पहले की तरह घूम फिर सकती है, अब ज्यादातर समय घर में रहती है। उसने बताया कि डॉक्टरों ने शरीर में मौजूद छर्रों से कोई नुकसान नहीं होने की बात कह कर उन्हें नहीं निकाला था। बेटी इल्मा की मौत और धमाकों की याद को भुलाने के लिए मां अनीसा अपना घर बदल चुकी है, लेकिन वह गम नहीं भूला पा रही है।
अनीसा अब अपना घर बदल चुकी हैं, वो अब सांगानेरी गेट के पास एक कमरे में रह रही है। अनीसा को जैसे ही पता चला कि कल धमकों को लेकर कोर्ट का फैसला आने वाला है तो उसकी आंख में आंसू आ गए। रोते हुए बोली, मेरी मासूम बच्ची ने किसी का क्या बिगाड़ा था? मेरी बच्ची पर हुए जुल्म का हिसाब तो बस कयामत के दिन अल्लाह के सामने होगा। अनीसा के साथ 16 साल की अलीना भी मौजूद थी, जो उस धमाके की चश्मदीद गवाह भी है। अलीना का कहना था कि इतना याद है कि बस एक धमाका हुआ, जिससे शरीर में कई जगह चुभन सी महसूस हो रही थी, जहां धमाका हुआ वहां जमीन धंस गई थी। चारों तरफ लोग चिल्ला रहे थे।
उसने बताया कि मैं मेरी छोटी बहन इल्मा के साथ दही लेने गई थी, लेकिन जैसे ही धमाका हुआ हम दोनों का हाथ छूट गया। उसके बाद की घटना पूरी तरह से याद नहीं है, होश आया तो वह अस्पताल में पहुंच चुकी थी। उसकी मां अनीसा का कहना है कि मैंने पूरी रात अपने पति इशाख के साथ मिलकर इल्मा को तलाशा, लेकिन नहीं मिली। बाद में सवाई मानसिंह अस्पताल के मुर्दाखाने में इल्मा का शव मिला।