नई दिल्ली अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद कुछ देशों का उसके प्रति लचीला रुख साफतौर पर दिखाई दे रहा है। इन देशों के बयानों में भी इस बात का सीधा संकेत दिखाई दे रहा है। खासतौर पर अफगानिस्तान के पड़ोसी देश तालिबान को लेकर क्या रुख अपनाने वाले हैं, ये देखना काफी दिलचस्प है। रूस, चीन और पाकिस्तान का रुख काफी हद तक स्पष्ट हो चुका है। इसको लेकर निगाहें भारत पर भी लगी हैं। इस संबंध में भारत क्या फैसला लेगा इसको भी दुनिया जानना चाहती है। इस संबंध में मंगलवार को सीसीएस की जो बैठक हुई थी उसमें फिलहाल इस बात पर तवज्जो दी गई कि अपने सभी नागरिकों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला जाए।
काफी हद तक रुख साफ
तालिबान के मुद्दे पर भारत का रूख यूं तो काफी हद तक स्पष्ट है। भारत की तरफ से ये भी साफ कर दिया गया है कि उसको तालिबान के कहे पर कोई विश्वास नहीं है। भारत का कहना है कि तालिबान की कथनी और करनी में फर्क है।
तीन बातों पर निर्भर करेगा फैसला
भारतीय अधिकारियों का ये भी कहना है कि अफगानिस्तान और तालिबान को लेकर भारत का फैसले कुछ चीजों पर निर्भर करता है। इनमें से पहली है कि भारत के खिलाफ उसकी जमीन का इस्तेमाल न हो। दूसरा है कि वहां पर रहने वाले अल्पसंख्यकों के प्रति तालिबान का कैसा व्यवहार रहता है। इसके अलावा एक तीसरी और बेहद अहम चीज है कि वर्ष 2011 में भारत-अफगानिस्तान के बीच हुए रणनीतिक समझौते पर तालिबान का क्या रुख रहता है।
जयशंकर ने की ब्लिंकन से बात
मुद्दे पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से भी वार्ता की है। इसके अलावा उनकी कई दूसरे अमेरिकी नेताओं से भी बात हुई है। आपको बता दें कि अमेरिका समेत यूरोपीय संघ में शामिल कई देशों ने तालिबान सरकार को मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया है। तालिबान के मुद्दे और अफगानिस्तान के ताजा हालातों पर दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की भी आपस में बात हुई है।
जम्मू कश्मीर में बढ़ सकती है चुनौती
मंगलवार को हुई सीसीएस की बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला और अफगानिस्तान में भारत के राजदूत रहे रुद्रेंद्र टंडन मौजूद रहे। इस बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी को वहां के ताजा हालातों की जानकारी दी गई। सूत्रों का ये भी कहना है कि इस बैठक में श्रृंगला ने भारतीय कूटनीति के समक्ष चुनौतियों और संभावनाओं के बारे में भी पीएम मोदी को अवगत कराया है। ऐसा भी माना जा रहा है कि यदि अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनती है तो जम्मू कश्मीर में भारत को अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।