उत्तराखंड के सामने सबसे बड़ी चुनौती सीमांत और पर्वतीय क्षेत्रों में अवस्थापना विकास की है। आधारभूत सुविधाओं का ढांचा जितना मजबूत होगा पर्यटन, कृषि, बागवानी के बूते राज्य की आर्थिकी को उतनी ही मजबूती मिल सकेगी। इस राह में फारेस्ट क्लीयरेंस और निर्माण कार्यों की अधिक लागत बड़ी बाधा के तौर पर सामने हैं। प्रदेश सरकार नीति आयोग से विकास में इन अवरोधों को दूर करने के लिए ठोस मदद चाहती है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शनिवार को दिल्ली में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग गवर्निंग बाडी की बैठक में उक्त सुझाव दिए। मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर वर्चुअल तरीके से बैठक में शिरकत की। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार की ओर से पर्वतीय राज्यों की इन्हीं तकलीफों के मद्देनजर नीति आयोग में अलग से प्रकोष्ठ बनाने की पैरवी की गई। खास बात ये है कि बीते वर्षों में नीति आयोग ने राज्य की ओर से उठाए गए कई बिंदुओं को गंभीरता से लिया है। केंद्र सरकार उत्तराखंड में अवस्थापना विकास से जुड़ी परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है। ऐसे में नीति आयोग ने राज्य की चुनौती को कम करने के लिए केंद्र को नए कदम सुझाए तो इससे राज्य को बड़ी राहत मिल सकती है।
नीति आयोग के समक्ष प्रमुखता से रखे गए ये बिंदु:
- राज्य में नई शिक्षा नीति के तहत दूरस्थ शिक्षा केंद्रों की अधिक संख्या में स्थापना की जाए।
- प्रदेश में तकरीबन कई जलविद्युत परियोजनाएं दशकों पुरानी हैं। ऐसे में राज्य सरकार चाहती है कि 25 से 30 साल पुराने पावर पर्चेज एग्रीमेंट में बदलाव किया जाए। इसके लिए वाइबिलिट गैप फंडिंग राज्य को की जाए।
- प्रदेश के अवस्थापना विकास में बड़ी समस्या शिड्यूल आफ रेट भी है। पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों समेत तमाम निर्माण कार्यों में लागत काफी ज्यादा आ रही है। राज्य सरकार चाहती है कि निर्माण मद में राज्य को दी जाने वाली राशि अलग शिड्यूल आफ रेट के आधार पर तय की जाए।
- हरिद्वार में एक कंटेनर डिपो और देहरादून-पंतनगर के लिए कार्गो टर्मिनल की मांग भी राज्य सरकार ने उठाई है।