देहरादून,चंद्रयान-दो चांद पर पानी की मौजूदगी, खनिजों की उपस्थिति समेत तमाम संभावनाओं की खोज तो करेगा ही, साथ ही यह भी पता लगाएगा कि धरती के भूकंप की तरह चांद पर चंद्रकंप आते हैं या नहीं। यदि चंद्रकंप आ रहे हैं तो उनकी तीव्रता क्या है। चंद्रकंप (मूनक्वैक) का पता लगाने के लिए चंद्रयान-दो में सिस्मोग्राफ लगाए गए हैं। खास बात यह कि सिस्मोग्राफ लगाने को लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान से सलाह ली थी।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार रोहेला ने बताया कि कुछ साल पहले जब चंद्रयान-दो की लॉन्चिंग की तैयारी शुरू की गई थी, तब इसरो के शीर्ष स्तर के एक अधिकारी वाडिया आए थे। उन्होंने चंद्रयान-दो का खुलासा करते हुए कहा था कि वह चांद पर चंद्रकंप का भी अध्ययन करना चाहते हैं। इसके लिए इसरो ऐसे सिस्मोग्राफ चाह रहा था, जिनका वजन कम से कम हो। ताकि चंद्रयान पर उसके भार का असर न पड़े। इसके साथ ही इसरो की यह भी मांग थी कि सिस्मोग्राफ न्यूनतम से लेकर उच्चतम फ्रीक्वेंसी पर काम करने वाले होने चाहिए।
इस पर वाडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रोहेला ने उन्हें संस्थान की भूकंप संबंधी प्रयोगशाला का भी भ्रमण कराया था। बताया था कि उनके पास जो सिस्मोग्राफ हैं, वह 0.003 से 50 हट्र्ज पर काम करते हैं। कम भार वाले सिस्मोग्राफ के लिए वाडिया संस्थान ने इसरो को कुछ कंपनियों के नाम भी सुझाए थे और कहा था कि चंद्रयान-दो के लिए वह अलग से भी सिस्मोग्राफ तैयार कर सकती हैं।
चंद्रयान के डाटा पर अध्ययन करेगा वाडिया
वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक चंद्रयान-दो से प्राप्त चंद्रकंप के डाटा को इसरो से प्राप्त किया जाएगा। इसके बाद अध्ययन कर पता लगाया जाएगा कि चांद पर कंपन की स्थिïति क्या है और वहां कितने अंतराल में चंद्रकंप आ रहे हैं।
नासा कर चुकी चंद्रकंप आने का दावा
वाडिया के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. रोहेला बताते हैं कि अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा चंद्रकंप आने का दावा कर चुकी है। हालांकि, अब भारत भी निकट भविष्य में इस पर आधिकारिक रूप से जानकारी दे पाएगा। नासा के डाटा की बात करें तो अध्ययन की अवधि में वहां रिक्टर पैमाने पर 4.5 से 5.5 मैग्नीट्यूट के चंद्रकंप रिकॉर्ड किए गए। साथ ही पता चला था कि वहां चार प्रकार के चंद्रकंप आते हैं। सबसे गहरे चंद्रकंप चांद की सतह से 700 किलोमीटर नीचे, दूसरे चंद्रकंप उल्काओं के टकराने से आ रहे थे, तीसरे प्रकार के चंद्रकंप थर्मल कंप थे, जो कि संभवत: चंद्रमा की सतह पर सूरज की किरणें पडऩे और उसके फैलने से आ रहे थे। वहीं, चौथे प्रकार के कंपन सतह से 20-30 किलोमीटर नीचे से आ रहे थे।
बेहद शक्तिशाली भूकंप जितना है चंद्रकंप का अंतराल
नासा के अध्ययन के हवाले से डॉ. रोहेला ने बताया कि पहले तीन प्रकार के चंद्रकंप आमतौर पर हल्के व कम हानिकारक हैं। मगर, चौथे प्रकार के कंपन पृथ्वी के भूकंप की तुलना में पांच गुना समय तक रहते हैं। सामान्य रूप में भूकंप 20 से 30 सेकेंड तक रहते हैं, जबकि कुछ चंद्रकंप 10 मिनट तक भी रहे। इस अंतराल तक वही भूकंप रहते हैं, जो बेहद विनाशकारी होते हैं। इसका मतलब यह है कि जब कभी चांद में भवन निर्माण के बारे में सोचा जाएगा तो बुनियादी ढांचा वैसा ही बनाना पड़ेगा, जैसा हिमालय में अपेक्षित है।