चम्पावत/देवीधुरा: रक्षा बंधन पर्व पर देवीधुरा स्थित मां बाराही देवी के आंगन खोलीखांड़ दुबाचौड़ मैदान में असाड़ी कौतिक पर झमाझम बारिश के बीच गुरुवार को चारों खामों के रणबांकुरों ने ‘बग्वाल’ पूरे जोश खरोश के साथ खेली। उन्होंने एक दूसरे पर जमकर फल व पत्थर बरसाए। जिनमें 122 रणबांकुरे घायल हो गए। जिनका अस्थायी अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा उपचार किया गया।
गुरुवार को सुबह से मौसम साफ था। बग्वाल देखने के लिए चम्पावत ही नहीं आसपास के जिलों के तमाम लोग पहुंचे थे। आसपास के मकानों की छतें ठसाठस भरी हुई थीं। दोपहर 2:6 बजे से वीर पुरुष खोलीखांड़ दुबाचौड़ मैदान में जुटना शुरू हो गए थे। सबसे पहले सफेद पगड़ी में वालिक, दूसरे पर गुलाबी पगड़ी में चम्याल, पीली पगड़ी में लमगड़िया व अंत में गहड़वाल खाम लाल पगड़ी में मैदान में पहुंची। सभी ने मां बाराही के मंदिर व मैदान की परिक्रमा की।
बग्वाल शुरू होने से ठीक पहले झमाझम बारिश शुरू हो गई। खुले मौसम के बीच ही 2:06 बजे बग्वाल शुरू हुई और 2:15 तक अनवरत चलती रही। कुल नौ मिनट बग्वाल खेली गई। बग्वाल चम्याल व वालिक तथा लमगडिय़ा व गहड़वाल खाम के बीच खेली गई। बग्वाल खेलने के बाद सभी ने आपस में गले मिलकर बधाई दी। खेलने वालों के साथ ही मेला देख रहे लोग भी रोमांच से सराबोर दिखे। इस दौरान आसमान में फल व पत्थर ही दिखाई दे रहे थे। जिनसे चोटिल होकर 122 घायल हुए। जिनमें चार को हड्डी व मांसपेशियों में समस्या बताई गई। गत वर्ष 241 घायल हुए थे। सभी को राजकीय चिकित्सालय व मंदिर परिसर में बने चिकित्सा कक्ष में डॉ. आरपी खंडूरी व डॉ. इंद्रजीत पांडेय के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपचार किया।
50 हजार लोगों ने देखी बग्वाल
मेला कमेटी के मुख्य संरक्षक लक्ष्मण सिंह लमगडिय़ा ने दावा किया कि इस बार करीब 50 हजार लोगों ने बग्वाल देखी। मेले में मुख्य रूप से केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा, विधायक पूर्ण फर्त्याल, देवरिया विधायक प्रेम सिंह मौजूद रहे। इस दौरान डीएम एसएन पांडे, एसपी डीएस गुंज्याल आदि मौजदू रहे। संचालन भुवन चंद्र जोशी ने किया। मेले के दौरान देवीधुरा की सड़कों में पांव रखने को जगह नहीं थी। यातायात व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस ने करीब दो किमी पहले ही वाहन रोक दिए थे। कानून व्यवस्था के लिए जिले समेत आसपास के जिलों की पुलिस लगाई गई थी।
जानिए बग्वाल एेतिहासिक मान्यता के बारे में
चंपावत में देवीधुरा में बाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षावन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है । मेले को ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं । लेकिन आम सहमति है कि नह बलि की परम्परा के अवशेष के रूप में ही बगवाल का आयोजन होता है । लोक मान्यता है कि किसी समय देवीधुरा के सघन वन में बावन हजार वीर और चौंसठ योगनियों के आतंक से मुक्ति देकर स्थानीय जन से प्रतिफल के रूप में नर बलि की मांग की, जिसके लिए निश्चित किया गया कि पत्थरों की मार से एक व्यक्ति के खून के बराबर निकले रक्त से देवी को तृप्त किया जाएगा, पत्थरों की मार प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा को आयोजित की जाएगी । इस प्रथा को आज भी निभाया जाता है । लोक विश्वास है कि क्रम से महर और फर्त्याल जातियों द्वारा चंद शासन तक यहाँ श्रावणी पूर्णिमा को प्रतिवर्ष नर बलि दी जाती थी । इतिहासकारों का मानना है कि महाभारत में पर्वतीय क्षेत्रों में निवास कर रही एक ऐसी जाति का उल्लेख है जो अश्म युद्ध में प्रवीण थी तथा जिसने पांडवों की ओर से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । ऐसी स्थिति में पत्थरों के युद्ध की परम्परा का समय काफी प्राचीन ठहरता है । कुछ इतिहासकार इसे आठवीं-नवीं शती ई. से प्रारम्भ मानते हैं ।