जंगल की भूमि पर कब्जा कर एक हजार से ज्यादा मजारें व अन्य संरचनाएं बनी होने की बात आई सामने

देहरादून:देवभूमि उत्तराखंड के जंगलों में अतिक्रमण कर वहां बन रही मजारों और अन्य धार्मिक संरचनाओं का विषय एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है। अब सरकार ने भी माना है कि जंगल की भूमि पर कब्जा कर एक हजार से ज्यादा मजारें व अन्य संरचनाएं बनी होने की बात सामने आई ह

अभी सर्वे जारी है और इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है। यद्यपि, इन्हें हटाने को छह माह की मोहलत दी गई है, लेकिन यह प्रश्न भी उठने लगा है कि इन संरचनाओं से कहीं जनसांख्यिकीय बदलाव का कोई संबंध तो नहीं। ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न फिजां में तैर रहे हैं।

इतना सब होने के बाद यदि विपक्ष ने मजारों के विषय को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया है, तो इसके पीछे देवभूमि का स्वरूप ही समाहित है। यही नहीं, अतिक्रमण की बात साबित होने के चलते मुस्लिम समुदाय के बीच से भी विरोध के सुर नहीं उठे हैं।

11 माह पहले सामने आई थी बात

राज्य के जंगलों में एकाएक मजारों और अन्य धार्मिक संरचनाओं की बाढ़ की पिछले वर्ष अप्रैल में आई सूचनाओं ने सरकार के कान खड़े कर दिए थे। यह बात सामने आई थी कि तराई और भाबर क्षेत्र के जंगलों में पिछले 15-20 वर्षों में इन संरचनाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है।

इसके बाद सरकार ने जून में वन विभाग को सर्वे कराकर राज्य के जंगलों में स्थित धार्मिक स्थलों के संबंध में रिपोर्ट मांगी। तब प्रारंभिक रिपोर्ट में वन क्षेत्रों में लगभग 400 धार्मिक संरचनाओं की बात सामने आई थी। कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में लगभग 40 मजारें अस्तित्व में होने का उल्लेख रिपोर्ट में है। यद्यपि, अभी गहन सर्वे का क्रम चल रहा है।

चौंकाता है मजारों का बढऩा

राज्य के वन क्षेत्रों में मंदिर, गुफाएं, संतों की समाधियां होने का क्रम तो प्राचीनकाल से ही है, लेकिन जंगलों में मजारों का अचानक बढऩा चौंकाता है। इससे उस आशंका की पुष्टि होती है, जिसमें कहा जाता रहा है कि धार्मिक संरचनाओं के नाम पर जंगल की भूमि कब्जाई जा रही है, ताकि इन्हें कमाई का जरिया बनाया जा सके।

यद्यपि, इसमें विभागीय हीलाहवाली भी कम जिम्मेदार नहीं है। जब वन भूमि में अतिक्रमण हो रहा होता है, तब इस ओर क्यों आंखें मूंद ली जाती हैं।

ऐसा कैसे संभव है कि जंगल में धार्मिक संरचनाएं बन जाएं और रखवालों को इसकी भनक तक न लगे। हैरत की बात यह कि वन विभाग की ओर से शासन को भेजी गई प्रारंभिक रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं है कि जंगलों में अवैध तरीके से धार्मिक स्थलों का निर्माण कब हुआ।

कई क्षेत्रों से हटाई गई मजारें

जंगलों में अवैध रूप से बनी मजारों को हटाने की मुहिम भी पिछले लगभग छह माह से चल रही है। पूर्व में देहरादून वन प्रभाग में 17, कालसी वन प्रभाग में नौ और गढ़वाल वन प्रभाग में बनी एक मजार को ध्वस्त किया गया था। इन सभी मामलों में वन भूमि में अतिक्रमण की पुष्टि हुई थी।

प्रारंभिक सर्वे में यह बात सामने आई है कि जंगलों में लगभग एक हजार स्थानों पर अतिक्रमण हैं और इसमें कार्रवाई चल रही है। जंगलों में मजार अथवा किसी अन्य धार्मिक स्थल के नाम पर किसी प्रकार का कोई कब्जा है तो उसे स्वयं हटाने के लिए कहा गया है। यदि छह माह के भीतर नहीं हटता है तो प्रशासन इसे हटाएगा। अब कोई नया अतिक्रमण नहीं होगा और विधिसम्मत ढंग से इसे हटाया जाएगा। सबके साथ न्याय के सिद्धांत पर कार्य किया जाएगा।

-पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री

वन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण न हो, इस पर सरकार का विशेष ध्यान है। कुछ अतिक्रमण हटाए गए हैं और यह क्रम आगे भी बना रहेगा। जंगल में जहां भी धार्मिक स्थल अथवा किसी अन्य आड़ में अतिक्रमण की शिकायत आती है तो उस पर गंभीरता से कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

-सुबोध उनियाल, वन मंत्री

जंगलों में स्थित धार्मिक संरचनाओं को चिह्नित करने का कार्य अभी जारी है। अतिक्रमण किसी भी तरह का हो, उसे हटाया जाएगा। साथ ही चिह्नीकरण, चौकसी और जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, ताकि कहीं भी अतिक्रमण की स्थिति न आए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.