देहरादून उत्तराखंड में आज हरेला पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी हैं। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि हरेला पर्व परंपराओं और संस्कृति से जुड़ा पर्यावरण संरक्षण का पर्व है। पर्यावरण को बचाने के लिए अधिक से अधिक पौधारोपण करना होगा। उन्होंने प्रदेशवासियों से अपने घरों व आसपास पौधारोपण कर इनकी नियमित देखभाल करने का आह्वान किया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संदेश में कहा कि यह त्यौहार संपन्नता, हरियाली और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। उन्होंने कहा कि यह पर्व सुख, समृद्धि और जागरूकता का पर्व भी है। नई पीढ़ी को भी पौधारोपण व पर्यावरण संरक्षण पर जोर देना होगा। वह स्वयं शुक्रवार को एसडीआरएफ बटालियन जौलीग्रांट और एमडीडीए सिटी पार्क में आयोजित पौधारोपण कार्यक्रम में शामिल होंगे।
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने सभी से पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक पौधारोपण करने की अपील की है। कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने भी प्रदेशवासियों को हरेला की शुभकामनाएं दी हैं। वह विज्ञान धाम, झाझारा में आयोजित पौधरोपण कार्यक्रम में शिरकत करेंगी।
जानिए क्या है हरेला और क्यों मनाया जाता है
सावन माह में हर तरफ हरियाली नजर आती है। ऐसा लगता है जैसे प्रकृति सजकर तैयार हो गई है। हरियाली के इसी उत्सव को मनाने के लिए उत्तराखंड में हरेला पर्व मनाया जाता है। हरेला उत्तराखंड के परिवेश और खेती से जुड़ा पर्व है, जो वर्ष में तीन बार चैत्र, श्रावण और आश्विन मास में मनाया जाता है। हालांकि, लोक जीवन में श्रावण (सावन) मास में पड़ने वाले हरेला को काफी महत्व दिया गया है। क्योंकि, यह महीना महादेव को खास प्रिय है। श्रावण का हरेला श्रावण शुरू होने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।
हरेला पर्व न सिर्फ नई ऋतु के शुभागमन की सूचना देता है, बल्कि प्रकृति के संरक्षण को भी प्रेरित करता है। इसीलिए उत्तराखंड में हरेला पर्व लोकजीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। अब तो इसी दिन से पौधरोपण अभियान शुरू करने की परंपरा भी शुरू हो गई है। कुमाऊं में तो हरेला लोकजीवन का महत्वपूर्ण उत्सव है।