तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के निर्माणाधीन बैराज के ऊपर काम कर रहे श्रमिकों ने मौत को बेहद करीब से देखा। अगर एक मिनट की भी देर हुई होती तो यहां काम करने वाले 37 श्रमिक काल के गाल में समा चुके होते। इन सभी श्रमिकों ने रस्सों के सहारे पहाड़ी पर चढ़कर जान बचाई। लेकिन, बैराज के निचले हिस्से में काम कर रहे उनके 27 साथी पलक झपकते ही सैलाब में बह गए।
परियोजना के बैराज पर रविवार को 64 श्रमिक कार्य कर रहे थे। इनमें लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) के 29 व छपरा (बिहार) के 35 श्रमिक शामिल हैं। सुबह साढ़े दस बजे के आसपास नदी के ऊपर की ओर से पहाड़ टूटने जैसी गडग़ड़ाहट गूंजी। इस भयंकर आवाज को सुनकर बैराज के ऊपर काम करने वाले सभी 37 श्रमिक सतर्क हो गए और पहाड़ी की ओर भागने लगे। रस्सों के सहारे बिना एक पल गंवाए वो कुछ ही मिनट में पहाड़ी पर चढ़ गए। लेकिन, इनके जो 27 साथी बैराज के निचले हिस्से में काम कर रहे थे, जान बचाने में असफल रहे।
मौत को बेहद करीब से देखने वाले लखीमपुर-खीरी के कृष्णा राय कहते हैं, ‘मुझे हमेशा अफसोस रहेगा कि मैं अपने साथियों की मदद के लिए प्रयास भी नहीं कर पाया।’ राय के अनुसार उनकी टीम में 29 श्रमिक थे, जिनमें से 14 की जान बच गई और 15 सैलाब में बह गए। वे बैराज के पास 50 से अधिक श्रमिकों के दबे होने की बात कहते हैं। बैराज पर छपरा-बिहार के 35 श्रमिक भी काम कर रहे थे। इस टीम के सदस्य आरिफ खान कहते हैं, ‘मेरी जान इसलिए बच पाई, क्योंकि मैंने सैलाब को आते देख लिया था।’
बताया कि उनकी टीम के 23 सदस्य बैराज के ऊपर और 12 निचले हिस्से में कार्य कर रहे थे। इसी टीम के सदस्य मोती लाल शाह कहते हैं, ‘जो साथी मेरी आंखों के सामने मौत के मुंह में समा गए, वो सभी मेरे गांव व आसपास के रहने वाले थे। मैं भी अब घर वापस लौटना चाहता हूं। जीवन रहा तो रोटी का इंतजाम हो ही जाएगा।’ एक अन्य श्रमिक सुदीप राय कहते हैं, ‘सैलाब का वह मंजर अब भी आंखों को सूखने नहीं दे रहा। काश! मैं अपने साथियों के लिए कुछ कर पाता।’