सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। जस्टिस एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली एक पीठ फैसला सुनाया। लुटियंस जोन में सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पर्यावरण मंजूरी समेत कई मुद्दों को उठाया गया था। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को नए संसद भवन के लिए 10 दिसंबर को आधारशिला की अनुमति दी थी, लेकिन इसके साथ में यह भी निर्देश दिया था कि कोई निर्माण नहीं होगा।
न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली की पीठ ने कहा था कि केंद्र सरकार सेंट्रल विस्टा परियोजना की आधारशिला रख सकती है, लेकिन इसके लिए कोई निर्माण, विध्वंस या पेड़ों की कटाई नहीं होगी। सरकार की ओर से भी आश्वासन दिया गया था कि लंबित याचिकाओं पर फैसला आने से पहले वहां पर निर्माण या विध्वंस का कोई कार्य नहीं होगा। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर को नए संसद भवन के निर्माण के लिए आधारशिला रखी और ‘भूमि पूजन’ किया, जो 20,000 करोड़ रुपये की सेंट्रल विस्टा परियोजना का एक हिस्सा है। इस पीठ में जस्टिस दिनेश महेश्वरी और संजीव खन्ना भी शामिल हैं। मामले में कोर्ट ने पिछले साल पांच नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट इस दौरान यह तय करेगा कि ये परियोजना कानून के मुताबिक है या नहीं। इस पर रोक लगाई जाए या नहीं। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि परियोजना पैसों की बचत होगी। इश प्रोजेक्ट से सालाना 20 हजार करोड़ की बजत होगी, जिसका भुगतान केंद्र सरकार के मंत्रालयों के लिए किराए के रूप में किया जाता है। इसने यह भी कहा था कि नए संसद भवन के निर्माण का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया है और परियोजना के लिए किसी भी तरीके से किसी कानून या मानदंडों का उल्लंघन नहीं किया गया है।
बता दें कि सितंबर, 2019 में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा की गई थी। इस परियोजना में संसद की नई त्रिकोणीय इमारत होगी, जिसमें एक साथ 900 से 1200 सांसद बैठ सकेंगे। इसका निर्माण 75वें स्वतंत्रता दिवस पर अगस्त, 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा। इसमें केंद्रीय सचिवालय का निर्माण वर्ष 2024 तक करने की योजना है।