देहरादून, मेट्रो सिटी से कदमताल कर रहे दून में मौत के 49 खंडहर भी खड़े हैं। अपनी आयुसीमा के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके इन भवनों में हजारों की संख्या में लोग रह रहे हैं। ऐसे में कब कौन सा जर्जर भवन भरभराकर जमींदोज हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। बावजूद इसके प्रशासन और नगर निगम इन भवनों को खाली कराने में नाकाम साबित हो रहा है। मानसून सीजन में जरूर अधिकारियों को गिरासू भवनों की याद आ जाती है और बरसातभर कागजी घोड़े दौड़ाने के बाद अधिकारी सालभर के लिए फिर खामोश हो जाते हैं। सालों से यह सिलसिला चला आ रहा है, लेकिन मौत के रूप में खड़ी इन इमारतों पर नींद नहीं टूट रही।
यह स्थिति तब है, जब 49 भवनों को कई साल पहले गिरासू श्रेणी में शामिल कर दिया गया था। यानी कि भवनों को खाली कराकर ध्वस्त किया जाना है, ताकि भवन स्वामी इनकी जगह नए भवनों का निर्माण कर सकें। हालांकि, बड़ी तादाद में ऐसे भवनों में किरायेदार रह रहे हैं और उनका मकान मालिक से विवाद चल रहा है। ऐसे कई प्रकरण न्यायालय में भी लंबित चल रहे हैं। बड़ा सवाल यह कि जिला प्रशासन व नगर निगम या तो न्यायालय में लंबित प्रकरणों को देखते हुए मौत के मुहाने पर बसे लोगों को उनके हाल पर छोड़ दे या फिर अपनी जिम्मेदारी व अधिकार का प्रयोग कर समय रहते उचित निर्णय ले।
कहीं ऐसी नौबत न आ जाए कि प्रशासन को तब कदम उठाना पड़े, जब कोई बड़ा हादसा हो जाए। क्योंकि दो साल पहले भी मानसून सीजन में तहसील चौक पर गिरासू भवन की ऊपरी मंजिल का एक हिस्सा भरभराकर नीचे आ गया था। वह तो शुक्र रहा कि तड़के की घटना होने के चलते इसकी चपेट में कोई नहीं आया और भवन भी कई साल से खाली पड़ा था। अभी भी मानसून सीजन चल रहा है और कोई भी गिरासू भवन इसी तरह ढह सकता है।
2013 से चल रही दिखावे की कसरत
वर्ष 2013 में जब केदारघाटी से लेकर उत्तराखंड के तमाम हिस्सों में अतिवृष्टि से आपदा आई थी, तब भी अधिकारियों को दून के गिरासू भवनों की याद आई थी। तब से निरंतर रूप से मानसून सीजन के आसपास गिरासू भवनों में रह रहे लोगों को नगर निगम नोटिस जारी करता है। यह बात और है कि इस तरह की कार्रवाई सिर्फ रिकॉर्ड दुरुस्त करने के लिए होती है। ताकि कोई भी हादसा होना पर अधिकारी अपना बचाव कर सकें।
अब डीएम ने तलब की रिपोर्ट
देहरादून के नए जिलाधिकारी सी रविशंकर ने भी आते ही गिरासू भवनों की सर्वे रिपोर्ट तलब कर ली। इस रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई कि 49 भवन जर्जर हालत में हैं और इन्हें खाली कराकर गिराया जाना जरूरी है। देखने वाली बात यह होगी कि हर बार की तरह यह कवायद भी फाइलों में डंप हो जाएगी या इस दफा प्रशासन की कार्रवाई सफल होगी।
18 बीघा भूमि पर बना एलआइसी का भवन आजादी से पहले का
भारत की आजादी से पहले अंग्रेजी शासन के वर्ष 1934 में देहरादून के सेठ मंसाराम ने ओल्ड कनॉट प्लेस पर अपनी 18 बीघा जमीन में एक विशाल रिहायशी तिमंजिली इमारत का निर्माण कराया था। हालांकि, इमारत के निर्माण के बाद जब इसके मकान नहीं बिके तो सेठ मंसाराम दिवालिया हो गए और इमारत भारत बीमा कंपनी (वर्तमान में भारतीय जीवन बीमा निगम) को गिरवी रख दी गई। उसके बाद उधार ली रकम वापस न करने के कारण इमारत पर भारत बीमा कंपनी का कब्जा हो गया। कंपनी ने इसमें बने मकान किराए पर देने शुरू कर दिए। आजादी के बाद जमीन की बढ़ती कीमतों को देखकर इमारत के निचले भाग में रहने वाले लोगों ने घर तोड़कर दुकानें बना लीं।
समय बदला व भारत बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) में बदल गई, जहां पर आज एलआइसी की यही शानदार इमारत लोगों के लिए मौत का मुहाना बन गई है। एलआइसी की तीन भागों में बनी इस विशाल तिमंजिली इमारत के हर भाग के निचले हिस्से में सामने की तरफ लगभग सौ-सौ दुकानें हैं। इसके अलावा बीच की मंजिल पर कुछ प्राइवेट ऑफिस, क्लीनिक और अन्य दुकानें हैं। ऊपरी मंजिल पर घर बने हुए हैं। अनुमानित तौर पर देखा जाए तो 18 बीघा के विशाल क्षेत्र में पीछे तक फैली इस इमारत में सैकड़ों लोगों की रोजी और हजारों लोगों की जिंदगी पल रही है। पुरानी हो चली इस इमारत में जगह-जगह दीवारों व लेंटरों में दरारें पड़ चुकी हैं। पूरी इमारत इस कदर खोखली हो चुकी है कि यह कभी भी धराशायी हो सकती है। इससे हजारों लोग मौत के मुहाने पर बैठे हुए हैं और रोज डर-डर कर जिंदगी बिता रहे हैं। यहां तक कि भवन की हालत को देखते हुए लोक दीवार पर कील ठोंकने से भी डरते हैं।
…हमारा मकान गिरा दो साहब
गिरासू भवनों को गिराने के लिए मकान मालिक खुद नगर निगम पहुंचने लगे हैं। दिल्ली निवासी सुधा शर्मा और उनकी दून निवासी बहन अर्चना ने भी महापौर विनोद चमोली से मुलाकात कर भवन गिराने का आग्रह किया है। सुधा ने बताया कि उनका कौलागढ़ में पुराना भवन है, जिसे निगम ने गिरासू घोषित कर रखा है। ये भवन सुधा, अर्चना व उनकी तीसरी बहन आशा शर्मा की संयुक्त संपत्ति है। भवन जर्जर हालात में है और कभी भी गिर सकता है। हादसे में किसी की जान भी जा सकती हैं। भवन में कुछ किरायेदार रहते हैं, जो खाली करने के लिए लाखों रुपये मांग रहे हैं।
यहां खड़े हैं खतरे
तहसील चौक, राजा रोड, कनाट प्लेस, तिलक रोड, आढ़त बाजार, झंडा बाजार, पुरानी सब्जी मंडी, मोती बाजार, घोसी गली, धारा चौकी के पास आदि।
सी रविशंकर (जिलाधिकारी) का कहना है कि गिरासू भवनों को खाली कराने के लिए अब गंभीरता से काम किया जा रहा है। जो प्रकरण कोर्ट में चल रहे हैं, उनमें बताया जाएगा कि लोगों की जान बचाने के लिए इन भवनों को खाली कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। आपदा प्रबंध एक्ट के तहत प्रशासन को कार्रवाई का अधिकार प्राप्त है।
विनोद चमोली (धर्मपुर क्षेत्र के विधायक व पूर्व महापौर) का कहना है कि जब तक मैं महापौर की कुर्सी पर रहा, गिरासू भवनों को खाली कराने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए गए। हालांकि, यह बात सामने आई कि प्रशासन की तरफ से कोर्ट में चल रहे प्रकरणों के निस्तारण के लिए प्रयास नहीं किए गए। सिर्फ मानसून सीजन में ही इन भवनों की याद अधिकारियों को आती है। यदि अब भी ऐसा नहीं किया गया तो किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है।
बारिश तो सीजन में आती है, भूकंप का खतरा हर समय
गिरासू भवनों को लेकर सिर्फ मानसून सीजन में ही सक्रिय होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि बारिश तो एक अंतराल के बाद कम हो जाएगी, मगर उससे बड़ा खतरा खंडहर बन चुके भवनों पर निरंतर मंडराता रहता है। यह खतरा का है भूकंप का। भूकंप का आकलन मौसम की तरह किया जाना भी संभव नहीं है। यह कब आएगा और इसकी तीव्रता कितनी होगी, इसकी भी भविष्यवाणी संभव नहीं है। यह भी सभी को पता है कि दून भूकंप के अति संवेदनशील जोन चार में बसा है। इसका मतलब यह है कि इस पूरे क्षेत्र में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है। इस लिहाज से भी अधिकारियों को गंभीरता से विचार कर गिरासू भवनों को खाली कराने की प्लानिंग करनी होगी। क्योंकि इन पर चार रिक्टर स्केल का झटका भी भारी पड़ सकता है।