किरती किसान यूनियन ने आने वाले पंजाब विधानसभा में न उतरने का फैसला किया है। संगठन ने साथ ही संयुक्त समाज मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने वाले किसान संगठनों से भी अपील की है कि वे संयुक्त किसान मोर्चा की एकता को बनाए रखने के लिए चुनाव में न उतरे। उन्होंने कहा कि संघर्ष के जरिए ही अभी तक संगठन ने तीन खेती कानूनों को वापस लेने जैसी लड़ाई जीती है। इसे बरकरार रखा जाए
आज यहां एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किरती किसान यूनियन के प्रधान निर्भय सिंह ढूढीके और रजिंदर सिंह दीप सिंह वाला ने कहा कि तीन कृषि कानूनों को खत्म करवाने के लिए जो आंदोलन शुरू किया गया था उसके कई मसले अभी भी लंबित हैं। उन्हें सरकारों से लागू करवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी है, इसलिए वे चुनावी लड़ाई में पडकर इस लड़ाई को कमजोर न करें।
राजिंदर सिंह दीप सिंह वाला ने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी एक मुहिम चलाएगी, जिसमें लोगों से संबंधित मसलों को रखा जाएगा और मतदाताओं से अपील की जाएगी कि जो पार्टी इन मुद्दों पर अपनी बात रखती है केवल उसी को वोट करें और अगर कोई पार्टी ऐसा नहीं करती तो नोटा का बटन दबाएं। मुद्दों के बारे में उन्होंने बताया कि हरे इन्क्लाब ने पंजाब के पर्यावरण को खराब कर दिया है इसलिए किसान व कुदरत पक्षीय माडल लाए जाने की जरूरत है। इसके अलावा लैंड सीलिंग एक्ट को सख्ती से लागू करने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि जितनी जमीन अतिरिक्त बचेगी उसे भूमिहीन किसानों के बीच में वितरित किया जाए। बेरोजगारी और ड्रग्स के मसलों को हल करने के लिए खेती आधारित उद्योगों को लगाने की भी उन्होंने मांग की।
किरती किसान यूनियन के नेताओं ने संयुक्त समाज मोर्चा के किसानों द्वारा चुनाव न लड़ने वाले किसान संगठनों पर आरोप लगाने का कड़ा नोटिस लिया है। उन्होंने कहा कि यह किसान संगठनों की एकता को नुकसान पहुंचाएगा। किरती किसान यूनियन के नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब किसान संगठन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों का विरोध नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा कि 3 खेती कानूनों को लेकर की संयुक्त किसान मोर्चा ने फैसला लिया था कि वे भाजपा के कार्यक्रम नहीं होने देंगे, लेकिन अब जब तीनों खेती कानून वापस लिए जा चुके हैं तो अब इस फैसले पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। राजनीतिक पार्टियों को किसानों की स्टेज पर न आने देने के सवाल के जवाब में रजिंदर पाल सिंह ने कहा कि अब किसान संगठनों ने भी अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली है। ऐसे में उन्हें अब संयुक्त किसान मोर्चा की बैठकों में आने देना है या नहीं इस पर फैसला 15 जनवरी को लिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि हमने उनसे अपील की हुई है कि वे राजनीतिक लड़ाई न लड़ें इसलिए उनके फैसले का इंतजार करने के बाद ही हम अपनी बात रखेंगे। किसान नेताओं ने कहा कि संयुक्त समाज मोर्चा बनने के बाद किसानों की एकता को धक्का जरूर लगा है, लेकिन यह खत्म नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि जो संगठन लोगों के मुद्दों की आवाज उठाते हैं लोग उन्हीं के साथ रहते हैं। राजिंदर पाल सिंह ने कहा कि किसान आंदोलन से पहले वीएम सिंह एक बड़ा नाम हुआ करता था, लेकिन जब उन्होंने किसानों के खिलाफ स्टैंड लिया तो आज उनका कोई नाम लेने वाला भी नहीं है।